The Single Best Strategy To Use For सूर्य पुत्र कर्ण के बारे में रोचक तथ्य

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अपनी माता कुंती को दान : कर्ण ने अपनी और पांडु पुत्रों की माता महारानी कुंती को भी अभय दान दिया था. अर्थात् उन्होंने महारानी कुंती को दान स्वरुप ये वचन दिया था कि “ वे हमेशा पांच पुत्रों की माता रहेंगी, उनके सभी पुत्रों में से या तो अर्जुन की मृत्यु होगी या स्वयं कर्ण मारे जाएँगे और वे महारानी कुंती के अन्य चार पुत्रों का वध नहीं करेंगे.

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इसी कारण कर्ण को राधेय कहा जाता है. महाबलि कर्ण ने दुर्योधन से मित्रता का निर्वहन अपने प्राणों की अंतिम श्वास तक किया.

इस वरदान की उत्सुकता को कुंती ज्यादा दिन रोक नहीं सकी और विवाह से पहले सूर्य देव को स्मरण कर एक पुत्र की उत्पति की जो सूर्य के समान तेज था और कवच और कुंडल पहने हुए था

युद्ध के समय कर्ण को चारो पांडवो को मरने का कई बार अवसर मिला, परन्तु कर्ण ने अपना वचन निभाते हुए उन्हें कभी क्षति नहीं पहुचाई

तब श्रीकृष्ण उसे आशीर्वाद देते हुए बोले- ” कर्ण जब तक सूर्य, चन्द्र, तारे और पृथ्वी रहेगी, तुम्हारी दानवीरता का गुणगान तीनों लोकों में किया जाएगा.

कर्ण की पत्नी का पद्मावती तथा पुत्रों का वृषकेतु, वृषसेन आदि नामोल्लेख मिलता है। कर्ण और अर्जुन बाल्यकाल से ही परस्पर प्रतिद्वन्द्वी थे। सूतपुत्र होने के कारण अर्जुन कर्ण को हेय समझते थे। उन्हें यह ज्ञात नहीं था कि कर्ण उनके बड़े भाई हैं। भीष्म भी कर्ण को इसी कारण अधिरथ कहते थे। कर्ण ने पाँचों पाण्डवों का वध करने का संकल्प किया था पर माता कुन्ती के कहने पर उन्होंने अपने वध की प्रतिज्ञा अर्जुन तक ही सीमित कर दी थी।

महाभारत के युद्ध के बीच में कर्ण के सेनापति बनने से एक दिन पूर्व इन्द्र ने कर्ण से साधु के भेष में उससे उसके कवच-कुण्डल माँग लिए, क्योंकि यदि ये कवच-कुण्डल कर्ण के ही पास रहते तो उसे युद्ध में परास्त कर पाना असम्भव था और इन्द्र ने अपने पुत्र अर्जुन की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कर्ण से इतनी बडी़ भिक्षा माँग ली लेकिन दानवीर कर्ण ने साधु भेष में देवराज इन्द्र को भी मना नहीं किया और इन्द्र द्वारा कुछ भी वरदान माँग लेने पर देने के आश्वासन पर भी इन्द्र से ये कहते हुए कि "देने के पश्चात कुछ माँग लेना दान की गरिमा के विरुद्ध है" कुछ नहीं माँगा।

मैं मायके चली जाऊंगी तुम देखते रहियो • ये उन दिनों की बात है • दिल ही तो है

भगवान श्रीकृष्ण को सताने लगी चिंता भगवान श्रीकृष्ण कर्ण की क्षमताओं से परिचित थे. वे जानते थे कि कर्ण सूर्य पुत्र हैं. कर्ण का नाम कौरवों के सबसे शक्तिशाली योद्धाओं की सूची में सबसे अव्वल था. भगवान श्रीकृष्ण इस बात को भी जानते थे कि जब तक कर्ण के पास कुंडल और कवच है तब तक कर्ण को पराजित करना मुश्किल है.

जिन्होंने पालन पोषण किया – सारथी अधिरथ और उनकी पत्नी राधा

कोणार्क सूर्य मंदिर, अद्भुत शिल्पकारी का नमूना

महाभारत का युद्ध आरम्भ होने से पूर्व, भीष्म ने, जो कौरव सेना के प्रधान सेनापति थे, कर्ण को अपने नेतृत्व में युद्धक्षेत्र में भागीदारी करने से मना कर दिया। यद्यपि दुर्योधन उनसे निवेदन करता है, लेकिन वे नहीं मानते। और फिर कर्ण दसवें दिन उनके घायल होने के पश्चात ग्यारहवें दिन ही युद्धभूमि में आ पाता है। तेरहवे दिन का युद्ध[संपादित करें]

कुरुछेत्र का युध्य शुरू होने से पहले कृष्ण कर्ण को have a peek at this web-site बताते है कि वो पांडव से भी बड़ा है, जिससे वो राज्य का सही उत्तराधिकारी है, युधिष्ठिर नहीं. कृष्ण बताते है कि वो कुंती और सूर्य का पुत्र है. कृष्ण उन्हें पांडव का साथ देने को बोलते है, लेकिन दुर्योधन से सच्ची दोस्ती व वफ़ादारी के चलते कर्ण इस बात से इंकार कर देते है. कृष्ण के अनुसार पूरी महाभारत में सिर्फ कर्ण ही है, जिन्होंने अंत तक धर्म का साथ नहीं छोड़ा और धर्म के ही रास्ते पर चले.

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